पुरी में अदाणी और इस्कॉन ने मिलकर प्लास्टिक-फ्री थालियों में बांटा प्रसाद

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पुरी की रथयात्रा सदियों से आस्था और श्रद्धा का महापर्व रही है। लेकिन वर्ष 2025 की रथयात्रा में एक नई परंपरा जुड़ गई—एक ऐसी परंपरा जो केवल भक्ति नहीं, बल्कि धरती के प्रति जिम्मेदारी और सेवा का संदेश भी देती है। इस नई परंपरा का केंद्र बना अदाणी समूह का ‘सेवा संकल्प’ अभियान, जो इस बार इस्कॉन के सहयोग से पूरी भक्ति और प्रतिबद्धता के साथ संपन्न हो रहा है।गौतम अदाणी की सोच ‘सेवा ही साधना है’, इस संपूर्ण सेवा भावना की प्रेरणा बनी है।

 

27 जून से शुरू हुई नौ दिवसीय रथयात्रा के दौरान अदाणी समूह और इस्कॉन की साझेदारी में 40 लाख से अधिक प्रसाद और ताजे फलों के जूस नि: शुल्क वितरित किए गए। ये भोजन श्रद्धालुओं, सुरक्षा कर्मियों और हजारों स्वयंसेवकों के लिए एक पवित्र अर्पण की तरह थे। यह सेवा केवल भूख मिटाने की नहीं थी, बल्कि आत्मा तक तृप्त करने वाली थी। इसके साथ ही, इस पहल ने पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की मिसाल पेश की। पहली बार इतने बड़े धार्मिक आयोजन में एक भी सिंगल यूज प्लास्टिक या थर्मोकोल का उपयोग नहीं हुआ। हर भोजन पर्यावरण-मित्र कागज़ की थालियों में परोसा गया और कचरे को अलग करने की व्यवस्था भी की गई, जिसे खाद में बदलने की योजना है।

 

प्रसाद की खासियत सिर्फ उनकी संख्या या स्वाद नहीं, बल्कि उनका पोषण और पर्यावरण के प्रति जागरूकता रही। प्रत्येक भोजन में लगभग 900 कैलोरी, 20 ग्राम से अधिक प्रोटीन, चावल, दालमा, टमाटर की चटनी और गुलाब जामुन शामिल थे। वहीं, गर्मी से राहत देने के लिए शुद्ध फलों का जूस भी वितरित किया गया।

 

 

 

एक स्वयंसेवक ने कहा, “यह सिर्फ भोजन नहीं, भगवान को समर्पित एक पवित्र अर्पण है। और धरती भी उसी भगवान की कृति है, इसलिए उसकी रक्षा भी हमारी भक्ति का हिस्सा है।” इस सेवा के संचालन में इस्कॉन के स्वच्छ और विशाल रसोईघरों की अहम भूमिका रही, जहां 24 घंटे काम कर रहे हज़ारों स्वयंसेवकों ने समर्पण की मिसाल पेश की। आधे से अधिक स्वयंसेवक स्थानीय थे, जबकि कुछ देश के विभिन्न हिस्सों से सेवा के उद्देश्य से आए। ओडिशा पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मियों को भी इसी सेवा का हिस्सा बनाकर यह संदेश दिया गया कि सेवा सबके लिए है, आम और खास सब एक समान हैं।

 

जैसे-जैसे भगवान जगन्नाथ के रथ 5 जुलाई को मंदिर लौटेंगे, पीछे छोड़ जाएंगे एक ऐसी सेवा की गूंज जो न केवल परंपरा को जीवित रखती है, बल्कि भविष्य को भी संवारती है।